विवादित जगह पर हमेशा से मस्जिद ही थी या फिर करीब चार सौ साल पहले मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद का निर्माण कराया गया था। यह विवाद तो वाराणसी की अदालत से ही तय होगा, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट को उससे पहले यह तय करना है कि वाराणसी की अदालत उस मुकदमे की सुनवाई कर सकती है या नहीं, जिसमें 31 साल पहले यह मांग की गई थी कि विवादित जगह हिन्दुओं को सौंपकर उन्हें वहां पूजा-पाठ की इजाजत दी जाए।
वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी समेत कई विग्रहों का सर्वे हो रहा है। इस सर्वे को लेकर पिछले दो दिनों से हंगामा हो रहा है। वाराणसी के सीनियर जज डिविजन के आदेश पर यह सर्वे हो रहा। मुस्लिम पक्ष सर्वे ना कराने की जिद पर अड़ा है। दूसरी तरफ एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी भी इसे लेकर बीजेपी पर निशाना साध रहे हैं। आखिर यह विवाद क्या है और क्यों कुछ लोग इसका अयोध्या की तरह हल चाहते हैं, विस्तार से समझते हैं।
हाईकोर्ट में इस विवाद से जुड़े मुकदमों की अगली सुनवाई आज होगी। वैसे कानूनी पेचीदगियों में यह मामला इतना उलझ चुका है कि इसमें अब तथ्य और रिकार्ड किनारे होते जा रहे हैं साथ ही अयोध्या विवाद की तरह भावनाएं हावी होती जा रही है। चलिए आपको बताते हैं।
ताजा विवाद श्रृंगार गौरी मंदिर को लेकर है। यह मामला अन्य सभी मामलों से अलग है। 18 अगस्त 2021 को वाराणसी की पांच महिलाओं ने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजन-दर्शन की मांग को लेकर सिविल जज सीनियर डिविजन के सामने वाद दर्ज कराया था। इसी मामले में जज रवि कुमार दिवाकर ने मंदिर में सर्वे और वीडियोग्राफी करने का आदेश दिया है। इस मामले की रिपोर्ट 10 मई तक कोर्ट को सौंपी जानी है। इसी दिन कोर्ट इस मामले में सुनवाई भी करेगा।
काशीविश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद क्या है?
कहा जाता है कि काशी विश्वनाथ के मूल मंदिर का निर्माण 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। सन् 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़ दिया और इसकी जगह मस्जिद बनाई। इस मस्जिद को बनाने में मंदिर के अवशेषों का ही इस्तेमाल किया गया। इस मामले में शुरू से ही मस्जिद को लेकर विवाद रहा है। हिंदू पक्ष का कहना है कि करीब चार सौ साल पहले मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद का निर्माण कराया गया था। काशी विश्वनाथ मंदिर के पास ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है। यहां अभी मुस्लिम समुदाय रोजाना पांचों वक्त सामूहिक तौर पर नमाज अदा करता है।
मस्जिद का संचालन अंजुमन-ए-इंतजामिया कमेटी द्वारा किया जाता है। साल 1991 में स्वयंभू लॉर्ड विश्वेश्वर भगवान की तरफ से वाराणसी के सिविल जज की अदालत में एक अर्जी दाखिल की गई। इस अर्जी में यह दावा किया गया कि जिस जगह ज्ञानवापी मस्जिद है, वहां पहले लॉर्ड विशेश्वर का मंदिर हुआ करता था और श्रृंगार गौरी की पूजा होती थी। याचिका में कहा गया कि मुगल शासकों ने इस मंदिर को तोड़कर इस पर कब्जा कर लिया था। याचिका में मांग की गई कि ज्ञानवापी परिसर को मुस्लिम पक्ष से खाली कराकर इसे हिंदुओं को सौंप देना चाहिए। वाराणसी की अदालत ने इस अर्जी के कुछ हिस्से को मंजूर कर लिया और कुछ को खारिज कर दिया।
मुस्लिम पक्ष क्यों कर रहा विरोध?
इस मामलें में विरोध की सबसे बड़ी वजह साल 1991 में बना सेंट्रल रिलिजियस वरशिप एक्ट है। मस्जिद कमेटी की तरफ से अदालत में यह दलील दी गई कि इस अर्जी को खारिज किया जाना चाहिए। दलील यह दी गई एक्ट में यह साफ तौर पर कहा गया है कि अयोध्या के विवादित परिसर को छोड़कर देश के बाकी धार्मिक स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 को थी, उसी स्थिति को बरकरार रखा जाएगा। एक्ट के मुताबिक अगर किसी अदालत में कोई मामला पेंडिंग भी है तो उसमे भी 15 अगस्त 1947 की स्थिति के मालिकाना हक को मानते हुए ही फैसला सुनाया जाएगा।